सूरजपुर:– एसईसीएल बिश्रामपुर क्षेत्र में क्वार्टर आवंटन में अव्यवस्था, दबंगई और अफसरों की चुप्पी एक बार फिर से सुर्खियों में है। ताजा मामला एक महिला कर्मचारी का है जो पिछले एक माह से ड्यूटी के साथ-साथ क्वार्टर के लिए अफसरों के चक्कर काट रही है, लेकिन अब तक उसे नियमानुसार आवास नहीं मिला।
पीड़ित महिला एसईसीएल में चपरासी (पियून) पद पर पदस्थ है। उसने 28 मई 2025 को बिश्रामपुर महाप्रबंधक को पत्र लिखकर क्वार्टर मांगा था। पत्र में उसने उल्लेख किया था कि वह दूरदराज गांव से ड्यूटी करने आती है, और बारिश के मौसम में उसे अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। महाप्रबंधक ने उसकी पीड़ा समझते हुए उसी दिन क्वार्टर आवंटन की स्वीकृति पर हस्ताक्षर कर दिए और एपीएम व कर्मचारी हरेंद्र तिवारी से मिलने को कहा।
एपीएम ने भी औपचारिकताएं पूरी करते हुए दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिए, लेकिन हरेंद्र तिवारी ने चिट्ठी लेने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि पहले यूनियन नेताओं से बात होगी, उसके बाद तय होगा कि क्वार्टर देना है या नहीं।
महाप्रबंधक भी हुए नाराज़, फिर भी नहीं मिला क्वार्टर।
एक सप्ताह बीत जाने के बाद जब महिला कर्मचारी दोबारा महाप्रबंधक से मिली तो वे इस देरी पर नाराज़ हुए और कारण पूछा। इसके बाद हरेंद्र तिवारी ने आवेदन तो ले लिया, लेकिन अब तक “यूनियन और अन्य लोगों से बात करने” की बात कहकर मामले को टालते जा रहे हैं।

अवैध कब्जा और क्वार्टर घोटाले की नई कड़ी।
इसी बीच एक और चौंकाने वाला मामला सामने आया है। 22 फरवरी 2024 को एक एसईसीएल कर्मचारी ने महाप्रबंधक को पत्र लिखकर बताया कि जब वह अपने लिए आवंटित क्वार्टर में सामान शिफ्ट कर रहा था, तब एक प्राइवेट महिला ने DMQ-147 नंबर क्वार्टर पर ताला तोड़कर कब्जा कर लिया।
अब डेढ़ साल बीत चुके हैं, लेकिन SECL का सुरक्षा विभाग इस महिला से क्वार्टर खाली नहीं करवा सका है। सवाल यह उठता है कि यह महिला कौन है जो इतने समय से विभाग को ठेंगा दिखा रही है?
सूत्रों के अनुसार, उक्त महिला का दावा है कि उसे पूर्व सुरक्षा अधिकारी पार्थ चटर्जी ने मौखिक रूप से क्वार्टर दिया था। हैरानी की बात यह है कि अब वह सुरक्षा विभाग के कुछ कर्मियों की मिलीभगत से इस अवैध कब्जे को वैध करवाने की कोशिश में लगी हुई है।
किराए पर रह रहे अस्थायी कर्मचारी, मगर अधिकारी चुप
SECL के कई अस्थायी और अनुबंध कर्मचारी आज भी किराए के मकानों में रहने को मजबूर हैं, जबकि प्राइवेट लोगों का क्वार्टरों पर कब्जा और रसूखदारों की पैरवी जारी है। इस पूरे प्रकरण में सुरक्षा विभाग, आवास प्रबंधन और यूनियन की भूमिका सवालों के घेरे में है।
अब देखना यह होगा कि मीडिया में खबर सामने आने के बाद एसईसीएल प्रशासन हरकत में आता है या फिर यह मामला भी बाकी कई मामलों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा।