🟥 नगरपालिका उपाध्यक्ष सहित 07 कांग्रेस पार्षदों को पद से हटाने पर उठे सवाल, विपक्ष ने बताई राजनीति से प्रेरित कार्रवाई।
सारंगढ़ (बिलाईगढ़)
क्या सारंगढ़ की नगरपालिका में एक ही नियम दो तरीके से लागू हो रहे हैं? क्या जनप्रतिनिधियों की निष्ठा और लोकप्रियता आज उनके खिलाफ हथियार बन चुकी है? ये सवाल अब सारंगढ़ की सड़कों, गलियों और राजनीतिक गलियारों में गूंज रहे हैं। नगरपालिका उपाध्यक्ष रामनाथ सिदार सहित कांग्रेस के सात पार्षदों को भूमि आबंटन मामले में प्रशासन द्वारा दोषी ठहराकर पद से हटाया गया है, जिसके बाद से शहर में बहस का दौर तेज हो गया है।
क्या है मामला?
बताया जा रहा है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली प्रेसिडेंट इन काउंसिल (PIC) ने नगर पालिका की एक भूमि का आबंटन नियमपूर्वक बैठक में प्रस्ताव पारित कर किया था। यह प्रक्रिया नगर निगम अधिनियम के अनुसार थी, जिसे मुख्य कार्यपालन अधिकारी (CMO) की जानकारी और स्वीकृति से लागू किया गया। इसके बावजूद, प्रशासन ने उक्त कार्रवाई को “नियम विरुद्ध” बताते हुए कांग्रेस पार्षदों को पद से पृथक कर दिया।
क्या भाजपा शासन में नहीं हुईं ऐसी कार्रवाई योग्य बातें?
कांग्रेस और स्थानीय संगठनों ने आरोप लगाया है कि पूर्व में भाजपा शासनकाल के दौरान भी नगरपालिका की कीमती ज़मीनें बेहद कम दरों पर लीज़ पर बांटी गईं थीं, लेकिन न तब कोई जांच हुई, न कार्रवाई। उदाहरण के तौर पर:
2009: अध्यक्ष अजय गोपाल ने एक शौचालय के पास 8×8 फीट की ज़मीन महज ₹300 किराए पर दी।
2011: प्रशासक अजय किशोर लकड़ा ने 400 वर्गफुट ज़मीन ₹597 में लीज़ पर दी।
2016: चम्पा ईश्वर देवांगन ने दो मामलों में 10×12 और 10×41 फीट ज़मीन क्रमशः ₹50,000 व ₹2/वर्गफुट में आबंटित की।
2000: अध्यक्ष राजेश्वरी केशरवानी ने गोदाम के पीछे ज़मीन ₹200 प्रतिमाह में दी।
कांग्रेस का आरोप – राजनीति से प्रेरित कार्रवाई।
पूर्व जिला कांग्रेस अध्यक्ष अरुण मालाकार ने आरोप लगाया कि यह कार्रवाई भाजपा के दबाव में की गई है। उन्होंने कहा कि वर्तमान निर्णय भी पिछली सरकारों की नीतियों की पुनरावृत्ति है। अगर आज की कार्रवाई सही है तो भाजपा शासनकाल की भूमि आबंटन पर भी FIR क्यों नहीं?
जिला कांग्रेस अध्यक्ष ताराचंद देवांगन ने कहा –
“पार्षदों को अपनी बात रखने का मौका तक नहीं मिला। प्रशासन जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों का अपमान कर रहा है। ये लोकतंत्र नहीं, तानाशाही का संकेत है।”

प्रशासनिक जवाबदेही पर सवाल।
विधि और प्रक्रिया की जानकारी CMO के पास होती है। जब प्रस्ताव उनके द्वारा अनुमोदित किया गया, तो दोष केवल जनप्रतिनिधियों पर क्यों? क्या CMO की भूमिका की भी जांच होगी?
अब जनता पूछ रही है:
क्या कार्रवाई केवल राजनीतिक पहचान देखकर की जा रही है?
जब नियम वही हैं, नगरपालिका वही है – तो दोहरा मापदंड क्यों?
क्या अब हर निर्वाचित पार्षद प्रस्ताव पारित करने से पहले राजनीतिक पार्टी का झंडा देखेगा?
मांग – सभी प्रकरणों की निष्पक्ष जांच हो।
स्थानीय सामाजिक संगठनों और नागरिकों ने मांग की है कि यदि किसी भी भूमि आबंटन में अनियमितता हुई है, तो सभी मामलों की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए – चाहे वो कांग्रेस के कार्यकाल के हों या भाजपा के।
सारंगढ़ नगरपालिका में हुई यह कार्रवाई न केवल कांग्रेस के लिए झटका है, बल्कि प्रशासनिक निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े करती है। जनता अब जवाब मांग रही है – न्याय होगा या राजनीति ही फैसला करेगी?