स्थान – राजपुर, बलरामपुर-रामानुजगंज
छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के आदिवासी अंचल में भूमि विवाद के चलते एक आदिवासी बुजुर्ग की आत्महत्या के मामले ने गंभीर मोड़ ले लिया है। पहाड़ी कोरवा जनजाति से संबंधित दिवंगत भैराराम की आत्महत्या के मामले में नामजद 6 आरोपियों की अग्रिम/नियमित जमानत याचिकाएँ छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट, बिलासपुर ने सख्ती से खारिज कर दी हैं।
यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार जायसवाल की एकलपीठ ने दिनांक 1 जुलाई 2025 को पारित किया। अदालत ने टिप्पणी की कि “जांच अधूरी है और आरोप प्रथम दृष्टया गंभीर हैं, ऐसे में ज़मानत देना न्याय के खिलाफ होगा।”
मामला क्या है?
पीड़िता जुबारो बाई, जो पहाड़ी कोरवा जनजाति की महिला हैं, का आरोप है कि उनकी पुश्तैनी ज़मीन को षड्यंत्रपूर्वक और धोखाधड़ी से शिवराम नामक व्यक्ति के नाम पर पंजीकृत कर दिया गया। इस पूरी प्रक्रिया में कोई मुआवज़ा या सहमति नहीं ली गई, और जमीन रजिस्ट्री फर्जी कागज़ात और हस्ताक्षर के आधार पर कराई गई।
पीड़िता के पति भैराराम, जिन्हें बार-बार धमकाया गया, ज़मीन खाली करने को मजबूर किया गया और सामाजिक रूप से अपमानित किया गया — उन्होंने आखिरकार 21-22 अप्रैल 2025 की रात फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।

दर्ज अपराध।
घटना को लेकर थाना राजपुर में अपराध क्रमांक 103/2025 के तहत धारा 108, BNS की धारा 3(5) एवं SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(2)(v) के तहत मामला दर्ज किया गया।
इससे पूर्व, 23 अप्रैल 2025 को एक अलग FIR (क्र. 90/2025) भी दर्ज की गई थी जिसमें ज़मीन के फर्जी दस्तावेज़ तैयार करने और धोखाधड़ी के आरोप लगे थे।
ज़मानत याचिकाएँ खारिज ये हैं आरोपी
छह आरोपियों की जमानत याचिकाएँ एक साथ खारिज की गईं:
1. विनोद कुमार अग्रवाल उर्फ मग्गू सेठ
2. प्रवीण अग्रवाल
3. दिलीप टिग्गा
4. चतुरगुण यादव
5. राजेन्द्र मिंज
6. धरमपाल कौशिक
अदालत ने माना कि आरोपियों की भूमिका प्रारंभिक जांच में सामने आ चुकी है और यह कोई साधारण मामला नहीं है।
राज्य का पक्ष।
राज्य की ओर से उप सरकार अधिवक्ता सुनीता मणिकपुरी ने अदालत में दलील दी कि
“मृतक को निरंतर धमकाकर और दबाव बनाकर मानसिक उत्पीड़न किया गया। आत्महत्या को उकसाने में अभियुक्तों की भूमिका स्पष्ट है। यदि ज़मानत दी जाती है तो यह न केवल जांच को प्रभावित करेगी, बल्कि पीड़िता परिवार को भी खतरे में डालेगी।”
‘मग्गू सेठ’: एक नाम, कई मुकदमे।
सूत्रों के अनुसार, मुख्य आरोपी विनोद अग्रवाल उर्फ मग्गू सेठ के खिलाफ पहले से ही 9 आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें भूमि कब्ज़ा, धोखाधड़ी और आदिवासी अधिनियम उल्लंघन शामिल हैं। स्थानीय समाज में यह नाम डर और दबदबे का प्रतीक बन चुका है।
स्थानीय नेटवर्क और चुप्पी का खेल।
पीड़ित परिवार और स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि आरोपी “एक संगठित गिरोह” की तरह काम करते हैं, जिनका स्थानीय नेताओं, अधिकारियों और बिचौलियों से सीधा संबंध है। यही वजह है कि इतने गंभीर आरोपों के बावजूद अब तक कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हुई थी।
एक स्थानीय पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया
“मग्गू सेठ के खिलाफ अगर रिपोर्ट करो, तो खुद के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने का डर रहता है। कई रिपोर्टर चुप रह जाते हैं।”
“मग्गू सेठ फाइल्स” की पहली दस्तक।
यह मामला अब केवल एक आत्महत्या की जांच नहीं, बल्कि आदिवासी अधिकार, ज़मीन हनन और सत्ता की साँठगाँठ के खिलाफ न्यायिक हस्तक्षेप की उम्मीद बन चुका है।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का यह आदेश पहाड़ी कोरवा समाज और अन्य आदिवासी समुदायों के लिए संविधानिक सुरक्षा की पुनर्पुष्टि है।
अगला भाग जल्द…
CGN24 की “मग्गू सेठ फाइल्स” सीरीज में पढ़ते रहिए:
रजिस्ट्री रैकेट: ज़मीन के कागज कैसे बनते हैं और कौन बनवाता है?
भरोसे की कब्र: आदिवासी भूमि पर कब्ज़े का पूरा तंत्र
खामोश पुलिस, मजबूत सेठ: कौन किसका संरक्षण कर रहा है?