छह हफ्तों में पांच क्रैश, अब कब जागेगा सिस्टम?
सूर्य नारायण CGN24 न्यूज़ नेटवर्क केदारनाथ/देहरादून/नई दिल्ली।
तीर्थ यात्रियों की श्रद्धा, आस्था और उम्मीदों को हवा में ले जाने वाले हेलीकॉप्टर, अब उनकी मौत का कारण बनते जा रहे हैं। केदारनाथ में हुआ ताज़ा हेलीकॉप्टर क्रैश, जिसमें पायलट की दर्दनाक मौत हो गई, ने पूरे देश को झकझोर दिया है। यह केवल एक हादसा नहीं, बल्कि देश की उड्डयन सुरक्षा व्यवस्था, नियामक एजेंसियों, और निजी कंपनियों की मिलीभगत से पनपे सिस्टम की विफलता का साक्ष्य है।
🔴 6 हफ्तों में 5 हेलीकॉप्टर हादसे।
6 हफ्तों में देशभर में 5 हेलीकॉप्टर दुर्घटनाएं जिनमें तीन आम नागरिक सेवाओं से जुड़ी थीं।
केदारनाथ हादसा: हेलीकॉप्टर में आग लगने के बाद पायलट की मौत, चमत्कार था कि यात्रियों की जान बची।
2022 में भी ऐसा ही हादसा जिसमें 7 लोगों की मृत्यु हुई थी।
🛩️ ऑपरेटर कंपनियों की लापरवाही और खेल।
चारधाम यात्रा के लिए उत्तराखंड सरकार द्वारा 9 निजी कंपनियों को उड़ान संचालन की अनुमति दी गई है। कई जगह यात्रियों और स्थानीय अधिकारियों ने आरोप लगाए हैं:
उड़ानों में ओवरलोडिंग आम बात है।
खराब मौसम में भी उड़ानें धंधे के दबाव में जारी रहती हैं।
कई हेलीकॉप्टर पुराने और तकनीकी परीक्षणों से बचे हुए होते हैं।
पायलटों पर लंबी ड्यूटी का दबाव, जिससे थकान और ध्यानभ्रम की आशंका बढ़ जाती है।
स्थानीय निवासी सुरेंद्र बिष्ट (रुद्रप्रयाग) कहते हैं:
“हेलीकॉप्टर कंपनियों और अफसरों की मिलीभगत है। हर साल ये उड़ानें मौत बनकर लौटती हैं, लेकिन कार्रवाई शून्य रहती है।”
डीजीसीए और उत्तराखंड उड्डयन विभाग की विफलता।
हेलीकॉप्टर उड़ानों की निगरानी के लिए DGCA (Directorate General of Civil Aviation) और राज्य उड्डयन विकास प्राधिकरण जिम्मेदार हैं। लेकिन:
निरीक्षण केवल कागज़ों तक सीमित है।
पायलट और तकनीकी स्टाफ की गुणवत्ता की जांच में भारी चूकें।
आपात प्रतिक्रिया व्यवस्था न के बराबर।
उड़ान पूर्व मौसम जांच महज़ औपचारिकता बन चुकी है।
एक वरिष्ठ अधिकारी (गोपनीयता की शर्त पर) में बताया:
“कुछ कंपनियों को टेंडर मिलते ही बिना सुरक्षा मानक के उड़ान भरने की छूट मिल जाती है। लाइसेंस जारी होने से पहले ही उड़ानें शुरू हो जाती हैं।”

तीर्थयात्रियों की ज़िंदगियाँ खेल नहीं।
चारधाम यात्रा में हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं। हेलीकॉप्टर सेवा खासकर वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांग यात्रियों और आपातकालीन मरीजों के लिए अहम होती है। लेकिन:
टिकट बुकिंग में ब्लैक और दलाली का बोलबाला।
एक सीट के लिए 30,000 से अधिक तक वसूली सरकारी दरों से तीन गुना!
कई यात्रियों ने बताया कि उन्हें बिना रसीद, कैश पेमेंट पर टिकट दिए गए।

रांची से आए यात्री रामेश्वर प्रसाद कहते हैं:
“हमने सोचा था हेलीकॉप्टर से केदारनाथ जाएंगे तो समय बचेगा, लेकिन उड़ते ही लगा जैसे मौत की तरफ जा रहे हैं।”
हादसे के बाद रुद्रप्रयाग प्रशासन मौके पर पहुंचा, लेकिन स्थानीय लोगों ने बताया कि दमकल और एंबुलेंस देर से पहुंची।
हेलीकॉप्टर पैड के पास कोई सुरक्षा ऑडिट नहीं, जबकि यहाँ प्रति दिन 100 से अधिक उड़ानें होती हैं।
SDRF के एक सदस्य ने बताया कि हादसे के बाद “बचाव नहीं, बस राख सहेजनी थी।”
अब क्या करें सरकार और सिस्टम?
हादसे के बाद उत्तराखंड सरकार और DGCA ने जांच की घोषणा तो कर दी, लेकिन 2022 की जांच रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं हुई। ऐसे में कुछ जरूरी माँगें उठती हैं:
1. सभी हेलीकॉप्टर ऑपरेटर कंपनियों की स्वतंत्र ऑडिट हो।
2. पिछले 5 वर्षों के हेलीकॉप्टर क्रैश की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।
3. चारधाम यात्रा के लिए उड़ानों का संचालन ISRO/IMD जैसी संस्थाओं की मौसम निगरानी से जोड़ा जाए।
4. DGCA के निरीक्षण में पारदर्शिता लाने स्वतंत्र निरीक्षण एजेंसी बने।
5. पीड़ित परिवारों को न्यूनतम 1 करोड़ मुआवजा और फास्ट-ट्रैक न्याय मिले।
श्रद्धा के नाम पर धंधा नहीं चलेगा।
हेलीकॉप्टर हादसे अब दुर्घटनाएँ नहीं, संरक्षित भ्रष्टाचार के उड़ते प्रमाण बनते जा रहे हैं। जिन पहाड़ों पर भगवानों का वास माना जाता है, वहाँ इंसानी लालच ने मौतों की मंडी लगा दी है।
जब तक सिस्टम पर जवाबदेही नहीं तय होती, और हेलीकॉप्टर सेवाओं को सुरक्षा-संवेदनशील घोषित नहीं किया जाता, तब तक हर उड़ान — आस्था नहीं, एक जुआ बनी रहेगी।