सूरजपुर,छत्तीसगढ़ 29 मई 2025
“जिस न्याय की कुर्सी पर बैठकर उम्मीदें बंधती हैं, जब वहीं से अन्याय होने लगे तो वह कुर्सी सिर्फ लकड़ी नहीं, सत्ता का घोटाला बन जाती है।”
छत्तीसगढ़ के सूरजपुर ज़िले से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पूरे राजस्व विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। तहसील भैयाथान के ग्राम करकोटी में एक जिंदा वृद्धा को मृत घोषित कर उसकी ज़मीन सौतेले बेटे और राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से हड़प ली गई। इस पूरे फर्जीवाड़े का सबसे चौंकाने वाला हिस्सा यह है कि खुद तहसीलदार ने उस ज़मीन का हिस्सा अपनी पत्नी के नाम पर खरीद लिया!
❖ पीड़िता का आरोप “मैं ज़िंदा हूं, मगर कागज़ों में मुझे मार दिया गया”
शैलकुमारी दुबे, जिनकी उम्र 75 वर्ष के आसपास बताई जा रही है, ने कलेक्टर जनदर्शन में अपनी व्यथा सुनाते हुए बताया कि उन्होंने 11 अगस्त 1976 को ग्राम करकोटी में 0.405 हेक्टेयर भूमि खरीदी थी, और तभी से उस पर काबिज रहीं। लेकिन 2025 में उनके सौतेले पुत्र विरेंद्र नाथ दुबे ने उन्हें ‘मृत’ बता दिया और तहसीलदार संजय राठौर की मिलीभगत से ज़मीन अपने नाम करवा ली।
हद तो तब हुई जब सूत्रों से यह सामने आया कि उनकी मृत्यु का पंचनामा 1967 का बना दिया गया, यानी उन्होंने ज़मीन खरीदने से 9 साल पहले ही “मृत्यु” पा ली थी!
❖भ्रष्टाचार की हद: तहसीलदार की पत्नी बनी खरीदार।
शिकायत में आरोप है कि फर्जी नामांतरण के तुरन्त बाद भूमि को तहसीलदार के करीबी शिवम दुबे व संजय के नाम बेचा गया, और उसके बाद ग्राम कोयलारी की भूमि का हिस्सा तहसीलदार की पत्नी शारदा देवी के नाम पंजीकृत करवा दिया गया। इस भूमि का रजिस्ट्रेशन 5 फरवरी 2025 को सूरजपुर रजिस्ट्रार कार्यालय में कराया गया।

❖ कैसे हुआ पूरा घोटाला?
1. मृत घोषित करने का पंचनामा तैयार हुआ 1967 में, जबकि पीड़िता ज़मीन 1976 में खरीदी।
2. पीड़िता से चार महीने पहले पटवारी ने संपर्क कर प्रतिवेदन बनाया, फिर वही पटवारी कैसे मृत्यु प्रमाण पत्र बनाता है?
3. नामांतरण केवल एक महीने में तीन पेशियों में हो गया, और तीसरे दिन ही चौहद्दी भी जारी कर दी गई — बिना उचित जांच और नोटिस के।
4. बाद में चालीस डिसमिल ज़मीन तहसीलदार के सहयोगियों के नाम, और कोयलारी की ज़मीन तहसीलदार की पत्नी के नाम रजिस्ट्री हो गई।
❖ सरकारी तंत्र पर गंभीर सवाल।

यह प्रकरण न केवल भ्रष्टाचार का खुला उदाहरण है, बल्कि प्रशासनिक पदों पर बैठे अफसरों की सत्ता, लालच और सिस्टम पर कब्ज़ा जमाने की मानसिकता को भी उजागर करता है।
पीड़िता की माने तो जिस महिला को न्यायालय से पूर्व में भी भूमि विवाद में निर्णय मिला, उसी के खिलाफ उसके ही अधिकारी मिलकर षड्यंत्र कर रहे हैं।
पीड़िता का कहना है कि जब उन्होंने आपत्ति की तो तहसीलदार ने जांच को प्रभावित करने के लिए पद और प्रभाव का इस्तेमाल किया।
❖ क्या कहती है स्थानीय जनता?
सूत्रों की माने तो गांव के निवासियों का कहना है कि विरेंद्र नाथ दुबे एक आदतन अपराधी है, जिसे इलाके में ‘नटवरलाल’ के नाम से भी जाना जाता है। वे यह भी बताते हैं कि वह पहले भी कई ज़मीन घोटालों और फर्जीवाड़े में जेल जा चुका है।
❖ प्रशासन का क्या रुख?
अब तक इस मामले पर प्रशासन की ओर से कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है। कलेक्टर कार्यालय में आवेदन प्रस्तुत हो चुका है, और मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच शुरू होने की संभावना है।
वहीं, कई RTI कार्यकर्ता और सामाजिक संगठन इस मामले को लेकर सक्रिय हो गए हैं और मांग कर रहे हैं कि तहसीलदार को तत्काल सस्पेंड किया जाए।
नामांतरण प्रक्रिया की निष्पक्ष जांच हो।
दोषियों के खिलाफ IPC की धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश, भ्रष्टाचार अधिनियम जैसी धाराओं में केस दर्ज हो
यह मामला केवल एक महिला की ज़मीन छिनने का नहीं, पूरे प्रशासनिक ढांचे में व्याप्त भ्रष्ट मानसिकता और सत्ता के दुरुपयोग का उदाहरण है। अगर इस मामले में जल्द और कठोर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह नजीर बन सकता है कि राजस्व अदालतों में न्याय की उम्मीद करना व्यर्थ है।
हमारी टीम इस खबर पर लगातार अपडेट देती रहेगी। ऐसे अन्य ज़मीन घोटाले या भ्रष्टाचार संबंधी जानकारी हो तो आप हमसे संपर्क करें।